Herbal colors of Sakhi Mandal in Holi - Gulal's pompHerbal colors of Sakhi Mandal in Holi - Gulal's pomp

*फूल, पत्तियों, फल, जैस्मिन तेल, चंदन, मुल्तानी मिट्टी से बना है पलाश गुलाल

*सखी मंडल की बहनें प्राकृतिक गुलाल का कर रही हैं निर्माण

*राज्य के पलाश मार्ट में बिक्री के लिए उपलब्ध है पलाश हर्बल गुलाल

रांची (दिव्या राजन)   रंगों के त्योहार होली के लिए सखी मंडल की महिलाएं हर्बल गुलाल का निर्माण कर रही हैं। होली को लेकर बाजार में रंग और अबीर की बिक्री जोरों पर है। इस होली में सखी मंडल की ग्रामीण महिलाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक उत्पादों से तैयार ऑर्गेनिक हर्बल अबीर लोगों के आकर्षण का केन्द्र है। होली के त्योहार में लोग रंगों में सराबोर होते हैं और एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाकर सामाजिक समरसता एवं भाईचारगी का संदेश बिखेरते है। सखी मंडल की दीदियों ने रंगों के इस पर्व को मनाने और साथ ही इससे आजीविका के वैकल्पिक साधन को तराशने का काम किया है। हज़ारीबाग एवं धनबाद के सखी मंडलों ने होली के बाजार की अग्रिम तैयारी करते हुए केमिकल रहित हर्बल गुलाल तैयार किया है। इसके अतिरिक्त महिलाएं गुलाल को पेशेवर तरीके से पलाश ब्रांड के अंतर्गत पैकेजिंग और मार्केटिंग कर रही हैं। ग्रामीण विकास विभाग व जेएसएलपीसी संपोषित सखी मंडलों की ग्रामीण महिलाओं की श्रम शक्ति से बाजार में केमिकल रहित प्राकृतिक गुलाल उपलब्ध कराया जा रहा है। हजारीबाग, धनबाद एवं गिरिडीह की सखी मंडल की दीदियां मुख्य रूप से प्राकृतिक गुलाल निर्माण से जुड़ी हैं। सखी मंडल की दीदियों के मुताबिक यह गुलाल त्वचा के लिए फायदेमंद है। इसमें किसी प्रकार का कोई नुकसानदेह या आर्टिफिशियल सामग्री का उपयोग नहीं किया जाता है। तो इस होली आप भी सखी मंडल की दीदियों द्वारा निर्मित अबीर का उपयोग कर त्वचा को सुरक्षित रख सकते हैं। सखी मंडल की दीदियां वनोपज एवं एवं फूलों के जरिए प्राकृतिक हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं। प्राकृतिक रूप से तैयार पलाश गुलाल लोगों को काफी पसंद आ रहा है। राज्य के सभी जिलों में स्थित पलाश मार्ट से पलाश प्राकृतिक गुलाल की खरीदारी की जा सकती है।

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गेंदा, पलाश व गुलाब के फूलों से तैयार कर रही हैं विभिन्न रंगों के गुलाल

हर्बल गुलाल बनाने के लिए विभिन्न जिलों की सखी मंडल की दीदियों द्वारा फूल, फल एवं पत्तियों का उपयोग किया जा रहा है। हरे रंग के लिए पालक, गुलाबी के लिए गुलाब के फूल, पीले और भगवा रंग के लिए पलाश एवं गेंदा फूल, लाल रंग के लिए चुकंदर और अन्य रंगों के लिए चंदन सहित अन्य प्रकार के फूल एवं पत्तियों के रंगो का प्राकृतिक रूप से उपयोग किया जा रहा है। सखी मंडल की बहनों द्वारा तैयार ऑर्गेनिक हर्बल गुलाल निर्माण के बाद आकर्षक पैकेजिंग के जरिए विभिन्न पलाश मार्ट्स में बिक्री के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है।

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अच्छी आमदनी कर रही हैं दीदियां

दारु प्रखण्ड के दारूडिह गांव की पूजा महिला समूह की सदस्य पुष्पा कुशवाहा बताती हैं कि उनलोगों ने पिछले साल से प्राकृतिक अबीर का निर्माण शुरू किया था, जिसकी काफी मांग थी। इस साल ऑर्गेनिक अबीर का निर्माण चार रंगों पीला, गुलाबी, हरा एवं लाल रंग में किया गया है। उन्होंने बताया कि पलाश मार्ट एवं सेल काउंटर के जरिए अबीर व गुलाल बिक्री के लिए उपलब्ध है। पुष्पा कुशवाहा बताती हैं कि रंगों में केमिकल का उपयोग होता है इसलिए वे लोग सिर्फ प्राकृतिक गुलाल का निर्माण कर रही हैं। कहा, उम्मीद है कि इस सीजन में हमलोगों की आमदनी 25 हजार से ज्यादा होगी।धनबाद के गोविंदपुर में प्राकृतिक अबीर निर्माण से जुड़ीं बलजीत कौर बताती हैं कि अभी तक हम महिलाओं ने मिलकर करीब डेढ़ क्विंटल प्राकृतिक अबीर का उत्पादन किया है। एक हफ्ते में वह करीब 10 हजार की आमदनी कर चुकी हैं।

पलाश हर्बल गुलाल है पूरी तरह सुरक्षित और प्राकृतिक

गुलाल तैयार करने में जुटी सखी मंडल की दीदियों के मुताबिक इसमें उपयोग होनेवाला हरेक सामग्री पोषणयुक्त है। चेहरे के लिए लाभप्रद है। इसमें किसी प्रकार का कोई नुकसानदेह या आर्टिफिशियल सामग्री का उपयोग नहीं किया जाता है।पलाश ब्राण्ड का गुलाल मात्र 30 रुपये में रांची में भी बिक्री के लिए हेहल स्थित पलाश मार्ट, पलाश होली स्पेशल काउंटर – प्रोजेक्ट बिल्डिंग, एफएफपी भवन एवं पिस्का मोड़ में उपलब्ध है।

दीदियों की आमदनी में बढ़ोतरी सुनिश्चित करने एवं उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के लिए पलाश ब्राण्ड अंतर्गत सखी मंडल की बहनों को प्राकृतिक गुलाल के निर्माण से जोड़ा गया है। होली के त्योहार में प्राकृतिक गुलाल की काफी मांग है। पलाश ब्राण्ड के तहत सखी मंडल की दीदियों द्वारा निर्मित प्राकृतिक गुलाल लोगों को काफी पसंद आ रहा है। इस पहल से दीदियों को त्योहार के समय अतिरिक्त आमदनी हो रही है। पलाश ब्राण्ड से जुड़कर ग्रामीण महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं और सफलता की नई कहानियां गढ़ रही हैं।

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