खतरनाक मंसूबे
रूस व यूक्रेन के संघर्ष के दौरान अंतर्राष्ट्रीय नियामक संस्थाओं व विश्व बिरादरी की लाचारगी के बीच चीन के रक्षा बजट में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हमारी गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। कहीं न कहीं चीन के मन में यह विचार जरूर होगा कि विश्व बिरादरी जब रूस की आक्रामकता पर अंकुश नहीं लगा पायी तो उसे रोकना भी मुश्किल होगा, क्योंकि वह आज विश्व की बड़ी आर्थिक ताकत है। वहीं चीन में दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का होना, उसकी अतिरिक्त शक्ति भी है। यूं तो चीन लगातार सात सालों से अपने रक्षा बजट में वृद्धि करता रहा है। लेकिन इस बार चौंकाने वाली स्थिति यह है कि उसके रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि की गई है। वह भी ऐसे समय में जब उसकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार कोरोना संकट के दौर में मंथर गति से आगे बढ़ी है। वर्तमान में चीन की विकास दर 5.5 फीसदी दर्ज की गई है। यह विकास दर पिछले तीन दशक में सबसे कम है। इसके बावजूद उसके द्वारा रक्षा बजट में सात फीसदी से अधिक की वृद्धि करना उसके खतरनाक मंसूबों को ही उजागर करता है, जो कहीं न कहीं उसके साम्राज्यवादी इरादों को पुष्ट करता है। बहुत संभव है कि कल वह यूक्रेन की तरह ताइवान व हांगकांग को पूर्ण रूप से देश का हिस्सा बनाने को रूस जैसे हथकंडे अपनाये। निस्संदेह, विकास दर के कम होने के बावजूद रक्षा खर्च में अधिक वृद्धि बताती है कि चीन की प्राथमिकताएं क्या हैं। इस कदम ने अंतर्राष्ट्रीय जनमानस की चिंताओं को बढ़ाया है। यही वजह है कि पिछले कुछ समय से अमेरिका चीन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये हुए है। उसे इस बात का बखूबी अंदाजा है कि कोरोना संकट के बावजूद मजबूत आर्थिक स्थिति में खड़ा चीन अपने साम्राज्यवादी मंसूबों को सिरे चढ़ाने का प्रयास करेगा। यूक्रेन संकट में रूस के साथ खड़ा चीन, अमेरिका समेत पश्चिमी जगत की चिंताओं को बढ़ा रहा है क्योंकि विश्व में शक्ति का नया ध्रुव बन रहा है।कोरोना काल के बाद उपजे परिदृश्य में चीन के रक्षा बजट में वृद्धि भारत की गंभीर चिंता का विषय होना चाहिए। दरअसल, चीन की इस तैयारी से हमारी वह चिंता और बढ़ जाती है, जो पिछले दो साल से एलएसी पर बनी हुई है। चौदह दौर की सैन्य कमांडर स्तर की वार्ता के बाद समस्या का निर्णायक समाधान नहीं निकला है। वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब लगते इलाकों में उसका सैन्य मकसद से स्थायी निर्माण करना और भारी-भरकम हथियारों के साथ बड़ी संख्या में सैन्य बलों की तैनाती हमारी गंभीर फिक्र का विषय होना चाहिए। हालांकि, भारत ने इस इलाके में सड़कों, सुरंगों व नये पुलों के निर्माण के जरिये इस चुनौती का मुकाबला करने का प्रयास किया, लेकिन इस दिशा में बहुत कुछ करना बाकी है। हाल ही के दिनों में चीन के रुख में कोई बदलाव नजर नहीं आया। रूस-यूक्रेन संकट के बीच भारत का रूस के साथ सामंजस्य इसी रणनीति का हिस्सा है कि यदि कहीं चीन से टकराव हो तो रूस भारत के साथ नजर आये। विगत में भी एक आजमाये दोस्त के रूप में रूस संकट के मौकों पर भारत के साथ खड़ा रहा है। लगता है चीन की यह तैयारी युद्ध की रणनीति का ही हिस्सा है। वह आधुनिकीकरण के क्रम में बड़े पैमाने पर लड़ाकू जहाज व पनडुब्बियां बना रहा है। चिंता की बात यह भी है कि चीन का रक्षा बजट भारत के रक्षा बजट का तीन गुना अधिक है, जिसका उपयोग वह उन्नत युद्ध तकनीकों के शोध व अनुसंधान पर करता है। जबकि भारतीय रक्षा बजट का साठ फीसदी हिस्सा सैन्य कर्मियों के वेतन-पेंशन आदि पर व्यय होता है। चीन का यह खर्च भारत के मुकाबले आधा ही है। अपनी रक्षा तैयारियों के बूते ही चीन आज वास्तविक नियंत्रण रेखा और हिंद प्रशांत क्षेत्र में लगातार आक्रामकता दिखा रहा है। ऐसे में एलएसी के विवादों के निपटारे के लिये भारत को कूटनीतिक विकल्प भी खुले रखने चाहिए क्योंकि दोनों देशों के संबंध अब तक के खराब दौर से गुजर रहे हैं।