नई दिल्ली 02 जनवरी,(एजेंसी)। नोटबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए माकपा ने कहा कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले की व्याख्या इस कदम को बनाए रखने के तौर पर नहीं की जा सकती। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की 500 और 1000 के नोट बंद करने के फैसला को सही बताया। जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच में 4 जजों ने पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन जस्टिस बीवी नागरत्ना ने फैसले पर असहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि नोटबंदी कानून के माध्यम से होने चाहिए थी।
सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा, इस मामले में निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिया गया था, जिसने आरबीआई की राय मांगी थी। इसलिए, इस फैसले को लागू करने से पहले संसद की मंजूरी लेनी चाहिए थी।
पार्टी ने कहा कि बहुमत के फैसले में कहा गया है कि नोटबंदी का उन उद्देश्यों के साथ उचित संबंध था जिसे हासिल करने की कोशिश की गई थी और यह प्रासंगिक नहीं है कि उद्देश्य हासिल किया गया था या नहीं।
पार्टी ने कहा कि इस तरह का फैसला लेने के सरकार के कानूनी अधिकार को बरकरार रखते हुए यह बहुमत का फैसला इस तरह के फैसले के प्रभाव के बारे में कुछ नहीं कहता है। नोटबंदी के कारण करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाली भारत की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था तबाह हो गई। छोटे पैमाने के औद्योगिक क्षेत्र, एमएसएमई को पंगु बना दिया, जिससे करोड़ों लोगों की आजीविका नष्ट हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 में फैसले के बाद से एक महीने के अंदर 82 लोगों की जान चली गई।
सीपीआई (एम) ने कहा, काले धन का पता लगाने और इसे विदेशी बैंकों से वापस लाने, नकली मुद्रा को समाप्त करने, टेरर फंडिंग को समाप्त करने, भ्रष्टाचार को मिटाने और अर्थव्यवस्था में कैश की निर्भरता को कम करने के उद्देश्य से लिए गया इस निर्णय से कुछ भी हासिल नहीं हो सका है। इसके विपरीत, आरबीआई के अनुसार नोटबंदी की पूर्व संध्या पर जनता के पास मुद्रा 17.7 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर अब 30.88 लाख करोड़ रुपये हो गई है, यानी 71.84 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
सीपीआई (एम) ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय का बहुमत का फैसला केवल इस तरह के निर्णय लेने के सरकार के अधिकार को बरकरार रखता है और किसी भी तरह से इस तरह के फैसले के परिणामों का समर्थन नहीं करता है.
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