New Delhi, 2975 लाल रंग की ग्लेज्ड मिट्टी के कुल्हड़ों से दीवार पर बना 100 वर्ग मीटर भित्ति चित्र भारत में अपनी तरह का केवल दूसरा और गुजरात में पहला है
स्मारक भित्ति चित्र देशभर से एकत्र की गई मिट्टी से बनाया गया है और इसमें इस्तेमाल किए गए कुल्हड़ KVIC की “कुम्हार सशक्तिकरण योजना” के तहत प्रशिक्षित 75 कुम्हारों द्वारा बनाए गए हैं
30 जनवरी को, 1857 से लेकर 1947 तक आज़ादी के आंदोलन में जिन लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया, उनकी स्मृति में पूरा राष्ट्र आज शहीद दिवस मनाता है
यह वर्ष हमारी आज़ादी के अमृत महोत्सव का वर्ष है और 75वें साल को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अत्यंत उत्साह के साथ मनाने का निर्णय लिया
इस निर्णय के पीछे दो उद्देश्य हैं- पहला, नई पीढ़ी को आज़ादी के संग्राम – 1857 से 1947 तक की लड़ाई के हर संघर्ष के महत्व के बारे में बताया जाए और आज़ादी के लिए जिन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया, अपार यातनाएं सहीं, उनके संघर्ष की जानकारी भी नई पीढ़ी तक पहुंचा कर राष्ट्र के पुनर्निर्माण का एक संकल्प नई पीढ़ी के मन में जागृत किया जाए
दूसरा उद्देश्य- प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश के सामने एक विचार रखा है कि हम आज आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और जब आज़ादी के 100 साल होंगे, तब हर क्षेत्र में भारत कहां होगा, उसका लक्ष्य तय करना है और उसका संकल्प लेना है
आज़ादी के अमृत महोत्सव का वर्ष संकल्प लेने का वर्ष है और 75वें साल से 100 साल तक की हमारी यात्रा, संकल्प यात्रा है जिसमें हमें अपने लक्ष्य तय करने हैं और भारत की जनता को उन लक्ष्यों की सिद्धि के लिए तैयार भी करना है
बापू ने ना सिर्फ आज़ादी की लड़ाई की शुरूआत की, बल्कि आज़ादी की लड़ाई में, स्वराज की लड़ाई के दौरान कई ऐसे विचार रखे जो आज़ादी पाने के लिए तो ज़रूरी थे ही, परंतु आज़ादी के बाद भारत के पुनर्निर्माण के लिए भी आवश्यक है
स्वदेशी, स्वभाषा, सत्याग्रह, प्रार्थना, उपवास, साधनशुद्धि, अपरिग्रह, सादगी – यह सिद्धांत गांधीजी ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान देश की जनता के भीतर सींचे और इनके आधार पर ही भारत के पुनर्निर्माण की शुरूआत हुई
दुर्भाग्य की बात थी कि अनेक सालों तक बापू की तस्वीर को तो श्रद्धांजलि दी गई, प्रवचनों में बापू का जिक्र तो हुआ, किंतु खादी, हस्तशिल्प, स्वभाषा के उपयोग और स्वदेशी की बात को भुला दिया गया
श्री नरेन्द्र मोदी ने देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद बापू के इन सारे सिद्धांतों को पुनर्जीवित करने का काम किया
आज़ादी के अमृत महोत्सव में नई शिक्षा नीति लाई गई, जिसने ये बताया कि ज्ञान पाने के लिये स्वभाषा से मजबूत और कोई साधन नहीं हो सकता, भारतीय भाषाएं सदैव विश्व के विकास में योगदान दे सकें, ऐसी व्यवस्था नई शिक्षा नीति में भारत के प्रधानमंत्री ने की
मेक इन इन्डिया, आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल – स्वदेशी की नई परिभाषा है, भारत के आर्थिक उत्थान के लिए आत्मनिर्भरता की कल्पना, भारत को विश्व में उत्पादन का केन्द्र बनाने की कल्पना और 130 करोड़ भारतीय, भारतीय उत्पादों का ही इस्तेमाल करें, ऐसा आग्रह – यह तीनों बातें बापू के स्वदेशी के सिद्धांत से ही निकली हुई हैं
खादी को पुनर्जीवित करने का काम भी देश के प्रधानमंत्री ने किया है, जब श्री नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तभी से उन्होंने खादी के प्रयोग को प्रोत्साहित करने का काम शुरू किया
मैं गुजरात की जनता से अपील करता हूं कि आप अपने घर और जीवन में ज़्यादा से ज़्यादा खादी का इस्तेमाल करें
खादी का उपयोग न सिर्फ गरीब व्यक्ति के रोजगार का साधन है, बल्कि देश के स्वाभिमान का प्रतीक है और महात्मा गांधी ने आज़ादी के आंदोलन के समय खादी का विचार, विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार से शुरू किया था और वो विचार आज भी उतना ही प्रासंगिक है
खादी के इस विचार को, स्वदेशी के विचार को और स्वभाषा को सम्मान देने का कार्य देश के प्रधानमंत्री और गुजरात के सुपुत्र श्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया, विश्व के किसी भी मंच पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी हिन्दी में ही बोलते हैं
अपनी भाषा को जानते ही बच्चा अपनी संस्कृति और भारत के इतिहास के साथ अपना नाता जोड़ लेता है और जब एक बच्चा अपनी भाषा से रिश्ता तोड़ लेता है, तब भारतीय संस्कृति और भारत के इतिहास से भी उसका रिश्ता तूट जाता है
स्वभाषा को मजबूत बनाने की नींव श्री नरेन्द्र मोदी ने नई शिक्षा नीति में रखी है और मुझे विश्वास है कि देश जब आज़ादी की शताब्दी मना रहा होगा, तब निश्चय ही हर भारतीय भाषा का गौरव शीर्ष पर होगा
आज महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने का एक बहुत सुंदर कार्यक्रम खादी ग्रामोद्योग आयोग ने किया है जिसमें कुल्हड़ों से बना महात्मा गांधी का भित्ति चित्र दर्शाया गया है और इसके लिए जगह भी ऐसी चुनी गई है कि ज्यादा से ज्यादा युवा और बच्चे यहां आते हैं और महात्मा गांधी के संदेश के साथ ही खादी और स्वदेशी का संदेश भी उन तक पहुंचेगा
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने किसानों की आय दोगुनी करने के लिए संबद्ध व्यवसाय किस तरह से बढ़ाने हैं, इस पर काफी जोर दिया है
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने आज गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के कुल्हड़ों से बने भित्तिचित्र का अनावरण किया। श्री अमित शाह ने प्रशिक्षित कुम्हारों और मधुमक्खी पालकों को 200 इलेक्ट्रिक पॉटर व्हील और 400 मधुमक्खी बक्से भी वितरित किए। स्वतंत्रता के 75वें वर्ष में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 74वीं शहीदी दिवस पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) द्वारा ये भित्ति चित्र तैयार किया गया है। 2975 लाल रंग की ग्लेज्ड मिट्टी के कुल्हड़ों से दीवार पर बना 100 वर्ग मीटर भित्ति चित्र भारत में अपनी तरह का केवल दूसरा और गुजरात में पहला है। स्मारक भित्ति चित्र देशभर से एकत्र की गई मिट्टी से बनाया गया है और इसमें इस्तेमाल किए गए कुल्हड़ KVIC द्वारा “कुम्हार सशक्तिकरण योजना” के तहत प्रशिक्षित 75 कुम्हारों द्वारा बनाए गए हैं। इस अवसर पर केन्द्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री श्री नारायण राणे, केन्द्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री श्री भानु प्रताप सिंह वर्मा और गुजरात के मुख्यमंत्री श्री भूपेन्द्र पटेल समेत अनेक गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे।
इस अवसर पर अपने संबोधन में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने कहा कि आज 30 जनवरी बापू का भी स्मृति दिन है, इसीलिए 30 जनवरी को 1857 से लेकर 1947 तक आज़ादी के आंदोलन में जिन लोगों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया, उनकी स्मृति में पूरा राष्ट्र आज शहीद दिवस मनाता है। आज के दिन ही साबरमती के जिस तट पर बापू ने आज़ादी के आंदोलन का आयोजन किया, उसी तट से आज उनके दिए आत्मनिर्भरता के मंत्र को साकार करते हुए मिट्टी के कुल्हड़ों से तैयार भित्ति चित्र के उदघाटन का कार्यक्रम आयोजित हुआ है और बापू को इससे बड़ी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती। श्री शाह ने कहा कि इस स्मृति दिन पर इस श्रद्धांजलि का एक और भी महत्व है कि यह वर्ष हमारी आज़ादी के अमृत महोत्सव का वर्ष है। देश की आज़ादी का 75वां साल है और 75वें साल को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अत्यंत उत्साह के साथ मनाने का निर्णय लिया है। इस निर्णय के पीछे दो उद्देश्य हैं- पहला, नई पीढ़ी, जो भविष्य के भारत की रचना करेगी, उन्हें आज़ादी के समग्र संग्राम – 1857 से 1947 तक की लड़ाई के हर संघर्ष के महत्व के बारे में बताया जाए और आज़ादी के लिए जिन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया और अपार यातनाएं भुगतीं, उनके संघर्ष की जानकारी भी नई पीढ़ी तक पहुंचा कर राष्ट्र के पुनर्निर्माण का एक संकल्प नई पीढ़ी के मन में जागृत किया जाए। दूसरा उद्देश्य है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने देश के सामने एक विचार रखा है कि हम आज आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और जब आज़ादी के 100 साल होंगे, तब हर क्षेत्र में भारत कहां होगा, उसका लक्ष्य तय करना है और उसका संकल्प लेना है। 25 साल बाद आज़ादी के 100 साल पूरे होने पर आर्थिक, रोजगार, शिक्षा के क्षेत्रों में कौन-कौन से लक्ष्य सिद्ध करने हैं।
इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्रमें भारत को विश्व में सर्वोच्च स्थान पर स्थापित करने के लिए क्या संकल्प लेना है, पर्यावरण जागरुकता और पूरी पृथ्वी
के वातावरण को अच्छा रखने के लिए भारत का क्या योगदान रहेगा, इन सारे क्षेत्रों में भारत की आज़ादी के 100 साल पूरे होने पर हम कहां
होंगे और वहां पहुंचने के लिए हमें आज क्या संकल्प करना है, उसका निर्णय करना है।
केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि ये आज़ादी के अमृत महोत्सव का वर्ष संकल्प लेने का वर्ष है और 75वें साल से 100 साल तक की हमारी यात्रा, संकल्प यात्रा है जिसमें हमें अपने लक्ष्य तय करने हैं और भारत की जनता को उन लक्ष्यों की सिद्धि के लिए तैयार भी करना है। महात्मा गांधी के स्मृति दिन पर साबरमति रिवरफ्रन्ट पे साबरमति नदी में बहते हुए नर्मदा के जल को देखते हुए ये विचार आ रहा है कि बापू ने उस जमाने में कैसे माहौल में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई शुरू की होगी। एक निशस्त्र व्यक्ति जब अंग्रेजों के पूरे साम्राज्य को उखाड़ फेंकने का संकल्प करता है, उस संकल्प की शक्ति कहां से आई होगी, वह हम सबके लिए प्रेरणास्त्रोत है। बापू ने ना सिर्फ आज़ादी की लड़ाई की शुरूआत की, बल्कि आज़ादी की लड़ाई में, स्वराज की लड़ाई के दौरान कई ऐसे विचार रखे जो आज़ादी पाने के लिए तो ज़रूरी थे ही, परंतु आज़ादी के बाद भारत के पुनर्निर्माण के लिए भी आवश्यक है। स्वदेशी, स्वभाषा, सत्याग्रह, प्रार्थना, उपवास, साधनशुद्धि, अपरिग्रह, सादगी – यह सिद्धांत गांधीजी ने आज़ादी की लड़ाई के दौरान देश की जनता के भीतर सींचे और इनके आधार पर ही भारत के पुनर्निर्माण की शुरूआत हुई।