CM's call, there should be a lot of spiritual programs in the ashrams of Ayodhya for one and a half years

अयोध्या 12 Oct. (Rns/FJ) । यूपी के मुख्यमंत्री व गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अगले डेढ़-दो वर्षों में यहां खूब आध्यात्मिक कार्यक्रम होना चाहिए। अयोध्या का प्रकाश देश-दुनिया के कोने-कोने में अध्यात्म व सांस्कृतिक रूप से पहुंचना चाहिए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को अयोध्या के राममंत्रार्थ मंडपम में श्रीराम मंत्र महायज्ञ रजत जयंती महामहोत्सव में उपस्थित संतों, श्रद्धालुओं व लोगों को संबोधित कर रहे थे। सीएम ने आह्वान किया कि अगले डेढ़- दो वर्षों में यहां खूब आध्यात्मिक कार्यक्रम होना चाहिए। अयोध्या का प्रकाश देश-दुनिया के कोने-कोने में अध्यात्म व सांस्कृतिक रूप से पहुंचना चाहिए। हमारा प्रयास होना चाहिए। अभी से हर आश्रम में अखंड रामायण पाठ, संकीर्तन, कथा के भव्य आयोजन हों। केवल इस धरा धाम पर ही नहीं, इस लोक में ही नहीं, अखिल ब्रह्मांड तक अयोध्या का संदेश जाना चाहिए।

कहा कि यह भगवान राम के मंत्रों की साधना का असर है। श्रीराम हर्षण कुंज पीठ के पूज्य महंत जी ने 13 कोटि श्रीराम मंत्र का जप करके अखंड साधना से जो दिव्य अमृत सिद्धि के रूप में प्राप्त की थी, वह लोककल्याण का माध्यम बना। कोई सोचता था कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हो पाएगा। हर कोई कहता था कि अब कुछ नहीं हो सकता, लेकिन राम मंत्र के जप का कितना प्रभाव है, यह पूज्य संतों ने साबित कर दिया। पूज्य संत राम मंत्रों का जप करते थे और विश्व हिंदू परिषद व रामसेवक (कारसेवक) पुरुषार्थ करते थे, जब आचार व विचार में समन्वय होता है तो परिणाम ऐसे ही सामने आता है। जैसे आज भव्य राम मंदिर के निर्माण के रूप में आ रहा है।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हम सभी धन्य हैं कि भारत की धरती पर जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। महाभारत जैसा ग्रंथ भी इस बात का साक्षी है। 5000 वर्ष पहले भगवान वेदव्यास ने जब इसकी रचना की थी तो आज के कथित विकसित देश, सभ्यताएं अंधकार में थीं। उस समय हमारे एक ऋषि उद्घोष करते हैं कि ‘दुर्लभं भारते जन्म मानुष्यं तत्र दुर्लभ’ यह दुर्लभ क्यों हुआ। क्योंकि दुनिया अंधकार में थी और भारत ऋषि-मुनियों व संतों के कारण दुनिया को ज्ञान का प्रकाश दे रहा था।

सीएम ने कहा कि संतों की साधना से जो भी सिद्धियां प्राप्त कीं, वह लोककल्याण-परमार्थ के लिए थीं, स्वार्थ के लिए नहीं। इस पीठ की परंपरा भी उसी प्रकार की रही है। साधना से जो भी अर्जित किया, वह प्रभु के श्रीचरणों के समर्पित कर लोककल्याण किया।

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