आलोक पुराणिक –
कई राज्यों में चुनावी मंडियां सज चुकी हैं, दुकानदार हुंकारे लगा रहे हैं। दुकानदारी की एक तरकीब यह भी है कि पड़ोसी दुकानदार का माल घटिया बताया जाये और अपना माल चकाचक बताया जाये। मेरे घर के करीब की सब्जी मंडी में एक आलूवाला पड़ोसी के आलुओं की ओर इशारा करते हुए हुंकारा लगाता है-घटिया आलू उधर हैं, बढिय़ा आलू इधर हैं। और कमाल यह है कि कभी घटिया आलू वाले से आलू उधार लेकर अपनी दुकान पर रखता है, अगर मांग बहुत ही ज्यादा हो जाये उसकी दुकान पर। उधर का घटिया आलू इधर आते ही बढिय़ा हो जाता है।
वादे उड़ रहे हैं मक्खियों की तरह, गिनती मुश्किल है। अगर वैज्ञानिक कुछ जुगाड़ ऐसा कर दें कि कोरोना के सारे वायरस चुनावी झूठ से मरने लगें, तो कम से कम पंजाब, उत्तराखंड, यूपी में तो कोरोना रातों रात गायब हो जायेगा। झूठ से अब कोई नहीं मरता, बल्कि झूठ से तो कइयों को रोजगार-धंधे मिल रहे हैं। टीवी चैनलों को इश्तिहार मिल रहे हैं, प्रिंटिंग प्रेसों को पोस्टर छापने का रोजगार मिल रहा है। झूठों की इतनी वैरायटी है इन दिनों कि झूठ की रेंज आश्चर्यचकित करती है।
22 करोड़ की कुल जनसंख्या वाले राज्य में कोई कह रहा है कि 50 करोड़ रोजगार दे दिये जायेंगे। गंजों को हेयर ड्रायर बेचे जा सकते हैं। कमाल यह है कि रोजगार के वादे करके नेता का रोजगार चलता जाता है। नेता तो आम तौर पर टॉप रोजगार अपनी फैमिली के लिए ही सुरक्षित रखता है। वादे अलबत्ता सबके लिए हैं और मुफ्त हैं। इतने रोजगार पैदा हो सकते हैं यह बात नेताओं को चुनावों में ही क्यों समझ में आती है, पहले क्यों नहीं बताते। चुनाव से पहले इस मारधाड़ में लगी रहती हैं कई पार्टियां कि जीजाजी ज्यादा कमा गये या बहू जी ज्यादा कमा गयीं। चुनाव से पहले परिवार ही कारोबार होता है, चुनाव के ठीक पहले जनता में परिवार दिखने लगता है।
चुनाव है जी चुनाव है, कोरोना का इस्तेमाल हम कैसे करें—एक नेता ने मुझसे पूछा। मैंने बताया कि सिंपल—दूसरी पार्टी से जब बंदों को तोड़कर लाओ, तो बताओ कि नये मंत्रालय बनाये जायेंगे, नये मंत्री बनाये जायेंगे। कोरोना इतने लंबे समय से है, अभी लंबा चलेगा, तो हम कोरोना मंत्रालय बनायेंगे, कोरोना मंत्रालय में एक कैबिनेट रैंक का मंत्री होगा और कम से कम तीन उपमंत्री होंगे। कोरोना कैबिनेट मंत्री-कोरोना उपमंत्री-अल्फा वेरिएंट, कोरोना उपमंत्री डेल्टा वेरिएंट, कोरोना उपमंत्री ओमीक्रोन वेरिएंट। कोरोना आम आदमी को भले ही बेरोजगार कर रहा हो, पर नेता इसमें भी रोजगार तलाश सकता है। कामयाब नेता दरअसल कामयाब दुकानदार होता है, माल बेचना आता है उसे।