People learn compassion, sense of duty from Valmiki - Mohan Bhagwat

कानपुर ,09 अक्टूबर (आरएनएस/FJ)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि समाज के लोगों को महर्षि वाल्मीकि से संवेदना, समर्पण और कर्तव्य की भावना सीखनी चाहिए।

वाल्मीकि जयंती पर वाल्मीकि समाज के सदस्यों को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान में समाज को अधिकार देने के लिए एक कानून की स्थापना की है, लेकिन सिर्फ कानून स्थापित करने से सब कुछ नहीं होगा। बाबा साहब अंबेडकर ने संसद में संविधान देते हुए कहा था कि अब तक जिन्हें पिछड़ा माना जाता था, वह पिछड़े नहीं रहेंगे।

वह सबके साथ समान रूप से बैठेंगे, हमने यह व्यवस्था बनाई है। लेकिन मन को भी बदलना होगा।

आरएसएस प्रमुख ने कहा, बाबा साहब ने कहा था कि उन्होंने व्यवस्था कर राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान की है। लेकिन यह तभी महसूस होगा जब सामाजिक स्वतंत्रता आएगी और इसलिए, डॉ अंबेडकर ने संघ के माध्यम से 1925 से नागपुर से उस भावना को लाने का काम किया।

उन्होंने आगे कहा, मैं वाल्मीकि जयंती के शुभ अवसर पर यहां आकर खुद को धन्य मानता हूं। मुझे नागपुर के पहले वाल्मीकि मंदिर के उद्घाटन में शामिल होने का मौका मिला था। उन्होंने सवाल पूछते हुए कहा, पूरे हिंदू समाज में वाल्मीकि समाज का वर्णन क्यों नहीं किया जाना चाहिए?

अगर वाल्मीकि ना होते तो राम दुनिया से परिचित ना होते।

मोहन भागवत ने कहा, वर्ण और जाति व्यवस्था की अवधारणा को भूल जाना चाहिए। आज, अगर कोई इस बारे में पूछता है, तो समाज के हित में सोचने वाले सभी लोगों को बताया जाना चाहिए कि वर्ण और जाति व्यवस्था की बात है यह अतीत है, इसे भुला दिया जाना चाहिए।

देश और खुद को आगे ले जाने का संकल्प हमारे मन में होना जरूरी है। वाल्मीकि समाज हमारे देश का गौरव है।

वाल्मीकि न होते तो राम दुनिया से परिचित नहीं होते। हमें सीखना चाहिए हमें समाज को हर स्थिति में उन्नत बनाना चाहिए।

भागवत ने इससे पहले नाना राव पार्क में स्थापित वाल्मीकि की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

वह उत्तर भारत के पहले स्वर संगम घोष शिविर में शामिल होने के लिए शनिवार को कानपुर पहुंचे थे।

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