S-400 missile systemsgood signs from america

अमेरिका से मिल रहे ये ताजा संकेत स्वागत योग्य हैं कि रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने के मामले में वह भारत को प्रतिबंधों से छूट दे सकता है। भारत ने अक्टूबर 2018 में रूस के साथ 5 अरब डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके मुताबिक एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की पांच युनिट खरीदने की बात तय हुई थी। अमेरिका की तत्कालीन ट्रंप सरकार ने चेतावनी दी थी कि अगर भारत ने इस समझौते पर अमल किया तो उसे काटसा (काउंटरिंग अमेरिकाज ऐडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट) के तहत कड़े प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं। बावजूद इसके, भारत ने सौदे को रद्द या स्थगित नहीं किया और समझौते के मुताबिक पिछले साल इसकी सप्लाई शुरू हो गई।
हालांकि अभी तक बाइडन प्रशासन ने प्रतिबंधों को लेकर कोई फैसला नहीं किया है, लेकिन जिस तरह की चर्चा वहां निर्णयकर्ताओं के बीच चल रही है, उससे लगता है कि अमेरिकी सरकार प्रतिबंध लगाने से बचना चाहेगी। सैंक्शन पॉलिसी के को-ऑर्डिनेटर पद के लिए राष्ट्रपति बाइडन के नॉमिनी जेम्स ओÓब्रायन का यह कहना महत्वपूर्ण है कि भारत पर प्रतिबंध लगाने का फैसला करने से पहले अमेरिका को जियो स्ट्रैटजिक पहलुओं, खासकर चीन के संदर्भ में बदले समीकरणों पर विचार करना होगा। यह भी कि इस मामले में भारत की तुलना तुर्की से नहीं की जा सकती। तुर्की ने भी रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदा था, जिसके कारण अमेरिका उस पर प्रतिबंध लगा चुका है।
अच्छी बात है कि अमेरिका में नीति-निर्माताओं को नए अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के मद्देनजर भारत की बढ़ती अहमियत का अहसास है। वे भारत की स्थिति और उसकी जरूरतों को लेकर भी संवेदनशीलता दिखा रहे हैं। वैसे उन्हें यह भी पता है कि यूक्रेन के सवाल पर रूस के साथ अमेरिका के संबंधों में चाहे जितना भी तनाव आ गया हो, भारत को रूस से दूर करने की कोशिश में वे एक हद से आगे नहीं बढ़ सकते। फिलहाल चीन के आक्रामक तेवर के मद्देनजर क्वॉड के एक महत्वपूर्ण सदस्य की हैसियत से भी भारत की भूमिका खासी महत्वपूर्ण है। ऐसे में बहुत संभव है कि अमेरिका प्रतिबंध लगाकर भारत को खुद से दूर कर लेने के बजाय उसे रूस से हथियार के और ज्यादा समझौता न करने को राजी करने की नीति अपनाए।
जहां तक भारत की बात है तो यह पहले दिन से साफ है कि उसकी विदेश नीति दूसरे देशों के आग्रहों या सुझावों से नहीं बल्कि अपने हितों से निर्धारित होती है। हथियारों के मामले में रूस लंबे अर्से से भारत का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। पिछले दशक के दौरान भी भारत में हथियारों के कुल आयात का करीब दो तिहाई हिस्सा रूस से ही आया है। ऐसे में अचानक इस पर रोक लगाना न तो उचित है और न व्यावहारिक। यह बात अमेरिका समझ रहा है तो यह दोनों देशों के रिश्तों में आती गहराई का सूचक है।

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