पवन दुग्गल –
‘बुल्ली बाई’ एप मामले में मोबाइल फोन पर उपलब्ध होने वाली सामग्री में न केवल महिलाओं बल्कि समुदाय विशेष को निशाना बनाकर पेश करने वाली करतूतों ने यथेष्ट लगाम लगाने की जरूरत को पुन: रेखांकित किया है। इंटरनेट ने किसी दुनिया के एक हिस्से में बैठे रहकर दूसरे छोर के इंसानों तक पहुंच करने या किसी को निशाना बनाने की जुर्रत करने की सहूलियत इलेक्ट्रॉनिक सामग्री और मोबाइल एप्लीकेशंस के जरिए बना दी है।
मोबाइल एप्लीकेशंस आज के समय की जरूरत बन गई हैं, लगभग हर कोई इन पर निर्भर है। नित दिन नई-नई एप्लीकेशंस आती हैं, इस तथ्य से इंकार नहीं है कि इनका असर न केवल व्यक्ति की जिंदगी बल्कि उसकी सोच, व्यवहार या नजरिए पर भी काफी हो गया है। इसीलिए मोबाइल एप्लीकेशन बनाने वाले, किस क्षेत्र में मांग हो सकती है, इस पर लगातार नजऱ रखते हैं। ‘बुल्ली बाई’ एप मध्ययुगीन मानसिकता का एक जाहिर रूप है- जब महिलाओं को बतौर निजी वस्तु की तरह खरीदा-बेचा जाता था।
आज, यह कहना कि ऑनलाइन नीलामी के जरिये कोई महिला एक वस्तु की भांति उपलब्ध है, वह विचार है जो आधुनिक सभ्यता के मूल्यों के नितांत खिलाफ है। हालांकि, तथ्य यह है कि इस तरह की सामग्री अभी भी किसी न किसी आनलाइन प्लेटफॉर्म पर होगी। गौर करने लायक सवाल यह है कि भारत का कानून इस बाबत कहां खड़ा है? फिलहाल भारत के पास विशेष तौर पर मोबाइल एप्लीकेशंस को लेकर नीति नहीं है। भारत ने अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया से भी नहीं सीखा, जिसके पास इस विषय पर विस्तृत दिशा-निर्देश वाली नीति है कि एप्लीकेशन निर्माता किन जरूरी नियमों का पालन करके अपना एप बनाएं।
साइबर कानून के नाम पर भारत के पास ले-देकर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कानून-2000 है, जो इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से संबंधित हर दिशा-निर्देश की जननी है। वर्ष 2000 में जब यह कानून बना था तब मोबाइल फोन इसके अंतर्गत नहीं आते थे। लेकिन आईएटी (संशोधन) एक्ट 2008 में मोबाइल फोन समेत सभी प्रकार के संचार उपकरणों को इस कानून के दायरे में लाया गया। हालांकि, इस आईटी कानून के प्रावधानों को भी गहराई से पढ़ें, तो इसमें अभी भी मोबाइल एप्लीकेशंस संबंधित कोई स्पष्ट नियम नहीं है। साफ है, कानून के अनुसार, एप्लीकेशंस बनाने वाले सभी निर्माता या तमाम एप्लीकेशन स्टोर, जहां सब एप्लीकेशंस उपलब्ध होती हैं, उन्हें इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाले सेवा-बिचौलिए की तरह लिया जाता है। इसमें आगे, यह वह वैध इकाइयां हैं जो अन्य लोगों के निमित्त, विशेष इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को प्राप्त-भण्डारण-संप्रेषित कर सकते हैं। हालांकि, सरकार के पास आईटी एक्ट के अनुच्छेद 87 में सेवा-बिचौलियों से यथेष्ट सावधानी बरतवाने संबंधी अनेक मापदंड लागू करवाने की शक्ति है, किंतु मोबाइल एप्लीकेशंस के संदर्भ में आज तक इसका इस्तेमाल नहीं हुआ। दरअसल, अब इस देश में तमाम सेवा-बिचौलियों को, यदि संबंधित कानूनन जिम्मेवारी में संवैधानिक छूट चाहिए, तो उन्हें केवल अनुच्छेद 79 के प्रावधानों के तहत अपने फर्ज को अंजाम देते समय यथेष्ट सावधानी रखना अनिवार्य है।
जहां केंद्र सरकार ने सेवा-बिचौलियों के लिए माकूल सावधानी बरतने संबंधी नियम-कानून बनाए हैं, वहीं मोबाइल एप्लीकेशंस और इनको होस्ट करने वाले एप्लीकेशन प्लेटफॉर्म्स के व्यवहार संबंधी अलग से नियम बनाने के बारे में विचार नहीं किया गया।
यहां तक कि इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटर मीडिएट्री गाइड लाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स-2021 में भी मोबाइल एप्लीकेशंस के लिए अलग से दिशा-निर्देश नहीं हैं। अब तक हमने यही देखा है कि किसी अवांछित एप्लीकेशंस पर केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया यही होती है कि आईटी एक्ट 69-ए के तहत प्राप्त शक्ति का प्रयोग कर उसको ब्लॉक करवा दे। नतीजतन, पिछले सालों के दौरान सरकार ने कई मोबाइल एप्लीकेशंस को प्रतिबंधित किया है। हाल ही में कई चीनी एप्लीकेशंस को भारतीय डिजिटल अधिकार क्षेत्र में ब्लॉक किया गया है। लेकिन यह उपाय कभी भी जादुई गोली सिद्ध नहीं हुए, क्योंकि जैसे ही आपने इन्हें ब्लॉक किया वहीं उत्सुकतावश लोग इनकी ओर खिंचते हैं, परिणामस्वरूप इन प्रतिबंधित मोबाइल एप्लीकेशंस की ओर इंटरनेट ट्रैफिक और अधिक मुड़ जाता है। इसीलिए आपस में जुड़े मौजूदा विश्व में ऐसे प्रतिबंध कभी भी पूर्णरूपेण नहीं हो सकते। आप किसी एप्लीकेशन को भारतीय अधिकार क्षेत्र में ब्लॉक कर भी दें, फिर भी भारत के उपभोक्ताओं की इन तक पहुंच वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के जरिए बरकरार रहती है। इसलिए इस किस्म की किसी मोबाइल सामग्री को प्रतिबंधित करने की बजाय मुल्कों को अवांछित सामग्री से निपटने को नूतन तरीका अपनाना पड़ेगा। भारत के संदर्भ में, देश के अधिकार क्षेत्र में मोबाइल एप्लीकेशंस पर नियंत्रण करने को एक अच्छा उपाय है, एक विस्तृत कानूनी ढांचा बनाना, साथ ही न्यूनतम मानदंड निर्धारण करना, जिनका पालन करना-करवाना प्रत्येक मोबाइल एप्लीकेशन निर्माता और इनको अपने प्लेटफॉर्म पर जगह देने वालों के लिए अनिवार्य हो।
उम्मीद है ‘बुल्ली बाई’ और अन्य मामले सरकार को मोबाइल एप्लीकेशंस पर उपलब्ध सामग्री पर अंकुश रखने के लिए एक अलग से नया कानून बनाने के लिए उत्प्रेरित करेंगे। आगे, आम उपभोक्ताओं की समझ एवं जागृति का स्तर बढ़ाने को सरकार प्रचार अभियान चलाए ताकि वे अवांछित मोबाइल एप्लीकेशंस पर आने वाली सामग्री से बहकने न पाएं।
तकनीक और कानून के बीच सदा ही प्रतिस्पर्धा रही है और तकनीक अक्सर कानून से दस कदम आगे रहती है। इसलिए, अब जबकि मोबाइल तकनीक और एप्लीकेशंस ने अच्छी-खासी प्रौढ़ता प्राप्त कर ली है, तो ऐसे यथेष्ट कदम उठाना भी लाजिमी हो जाता है, जिससे कि अवांछित एप्लीकेशंस द्वारा पेश मौजूदा चुनौतियों से निपटने को भारतीय कानून के ढांचे में सुधार हो। इस किस्म की राह अपनाकर देश को एप्लीकेशंस और मोबाइल के अन्य उपयोगों से प्राप्त अवांछित सामग्री की संभावित उपलब्धता से बचाया जा सकता है।
(लेखक साइबर कानून विशेषज्ञ हैं)