नई दिल्ली 14 Jully (एजेंसी)- भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के प्रमुख मृत्युंजय महापात्र ने कहा कि भारत में पिछले कुछ वर्षों में खराब मौसम की वजह से होने वाली मौतों की संख्या में काफी कमी आई है लेकिन सामाजिक-आर्थिक प्रगति के बीच संपत्ति का नुकसान बढ़ रहा है।
वर्ष 2013 की केदारनाथ बाढ़ और इस साल हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि आपदा प्रबंधन एजेंसियों और आम जनता की ओर से पूर्व चेतावनी प्रणाली, पूर्वानुमान, तैयारी, रोकथाम और शमन में भारी सुधार हुआ है।
सामाजिक-आर्थिक प्रगति के कारण संपत्ति का नुकसान बढ़ा
नीति अनुसंधान थिंक टैंक द सेंटर फॉर एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) की एक रिपोर्ट जारी करने के लिए एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा, “हम वर्षों से मौतों की संख्या को कम करने में सक्षम रहे हैं, लेकिन संपत्ति का नुकसान बढ़ रहा है क्योंकि देश में सामाजिक-आर्थिक प्रगति बढ़ रही है।” भारत में हर साल बिजली गिरने से 2,500 लोगों की मौत हो जाती है और वज्रपात एक चुनौती बन गई है, जबकि हमने उष्णकटिबंधीय चक्रवातों जैसी आपदाओं का लगभग मुकाबला किया है और उन पर विजय प्राप्त की है।
“बिजली गिरना एक बहुत ही त्वरित घटना है और ऐसा होने में कम समय लगता है। इसकी भविष्यवाणी भी मुश्किल है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में भारत मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान ने बिजली की भविष्यवाणी के लिए एक मॉडलिंग प्रणाली विकसित की है।
भारत दुनिया के केवल पांच देशों में से एक है जिसके पास बिजली गिरने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली है। उन्होंने कहा कि शहरी आबादी में वृद्धि के साथ, शहरों में बाढ़ की समस्या देश के लिए एक और चुनौती बन गई है। सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लगभग 72 प्रतिशत जिले अत्यधिक बाढ़ के संपर्क में आ सकते हैं लेकिन उनमें से केवल 25 प्रतिशत में ही बाढ़ के स्तर का पता लगाने का पूर्वानुमान स्टेशन या प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली हैं।
असम, बिहार और यूपी में बाढ़ की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली बेहतर
बाढ़ के उच्च जोखिम के बावजूद, असम, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम बाढ़ की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के मामले में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्य हैं। रिपोर्ट से पता चला है कि हिमाचल प्रदेश, जो वर्तमान में बड़े पैमाने पर बाढ़ से जूझ रहा है, उन राज्यों में से एक है जहां प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों की सबसे कम उपलब्धता है। दूसरी ओर, उत्तराखंड अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं के संपर्क में है, लेकिन बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली की उच्च उपलब्धता है।
यमुना के उफान के कारण भीषण बाढ़ की चपेट में आई दिल्ली पर आंशिक रूप से अत्यधिक बाढ़ का खतरा रहता है और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (ईडब्ल्यूएस) यहां मध्यम स्तर का है। भारत में लगभग 66 प्रतिशत लोग अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं का सामना करते हैं। हालांकि, उनमें से केवल 33 प्रतिशत बाढ़ ईडब्ल्यूएस से कवर हो पाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा, 25 प्रतिशत भारतीय आबादी पर चक्रवातों और उनके प्रभावों का खतरा रहता है लेकिन चक्रवात की चेतावनी खतरे में रहने वाली 100 प्रतिशत आबादी के लिए उपलब्ध है।
प्राकृतिक आपदाओं में 1.38 लाख लोगों की जान गई
स्वतंत्र थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट के अनुसार, भारत ने 365 दिनों में 314 दिनों में 2022 में खराब मौसम की चुनौतियों का अनुभव किया। इन घटनाओं ने 3,026 लोगों की जान चली गई और 19.6 लाख हेक्टेयर फसल क्षेत्र को नुकसान पहुंचा। संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी विश्व मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार खराब मौसम, जलवायु और बाढ़ से संबंधित घटनाओं के कारण 1970 से 2021 के बीच 573 आपदाओं का सामना करना पड़ा इनमें करीब 1,38,377 लोगों की जान गई।